ARYAN INVASION THEORY : सिंधु घाटी (हड़प्पा) के लोग ही असली आर्यन थे! इतिहास का सबसे बड़ा धोखा?
आपको स्कूल के इतिहास की क्लास याद है? वो थोड़ी सी नींद वाली, थोड़ी सी बोरिंग क्लास, जिसमें टीचर एक कहानी सुनाते थे और हम उसे सच मानकर अपनी कॉपी में लिख लेते थे। मेरे लिए तो वो कहानी "आर्यन इन्वेजन थ्योरी" वाली थी।
मुझे आज भी याद है, मैडम चॉक से बोर्ड पर लिख रही थीं, गोरे-चिट्टे, लंबे-चौड़े लोग, घोड़ों पर सवार होकर आए, संस्कृत लाए, वेद लाए और यहाँ के मूल निवासियों को, जिन्हें द्रविड़ कहा गया, दक्षिण की ओर धकेल दिया। मैंने भी सिर हिलाया था। हाँ, ठीक है। लॉजिकल लग रहा है। एक ताकतवर कौम आई और जीत गई। कहानी खत्म। मैंने इस पर कभी सवाल नहीं किया। शायद आपने भी नहीं किया होगा। है न?
लेकिन यार, ज़िंदगी की सबसे मज़ेदार बातें तब शुरू होती हैं जब आप उन कहानियों पर सवाल उठाते हैं जिन्हें आप आँख बंद करके सच मानते आए हैं।
कई साल बाद, जब मैं खुद चीज़ों को समझने की कोशिश कर रहा था, तो मेरे हाथ कुछ किताबें लगीं, कुछ आर्टिकल्स पढ़े। और अचानक, मेरे दिमाग में एक बल्ब जला। वो स्कूल वाली कहानी... उसमें कुछ तो गड़बड़ थी। बहुत बड़ी गड़बड़। ऐसा लगा जैसे किसी ने एक बहुत बड़ा झूठ इतने करीने से बोला हो कि वो सच लगने लगा।
तो आज मैं आपको कोई लेक्चर देने नहीं आया हूँ। सच कहूँ तो मैं कोई बहुत बड़ा इतिहासकार भी नहीं हूँ। मैं तो बस एक जिज्ञासु इंसान हूँ, आपकी तरह, जो इस झूठ की परतें उधेड़ना चाहता है। क्या आप मेरे साथ इस जासूसी में शामिल होंगे? चलिए, एक-एक करके सबूतों को देखते हैं और इस केस को हमेशा के लिए सॉल्व करते हैं।
वो झूठ, जिसकी जड़ें हमारी मिट्टी में हैं ही नहीं
किसी भी झूठ को पकड़ने का पहला नियम क्या है? ये देखो कि झूठ बोला किसने और क्यों बोला।
जब मैंने इस आर्यन आक्रमण वाली कहानी की जड़ें खोदनी शुरू कीं, तो मैं हैरान रह गया। इसकी जड़ें भारत में नहीं, बल्कि 19वीं सदी के यूरोप में थीं। उस वक्त हम पर अंग्रेज़ों का राज था। और वो सिर्फ ज़मीन पर राज नहीं करना चाहते थे, वो हमारे दिमाग पर भी राज करना चाहते थे।
एक जर्मन साहब थे, मैक्स म्यूलर। बड़े विद्वान थे। उन्होंने और उनके जैसे कई यूरोपियन स्कॉलर्स ने देखा कि अरे, संस्कृत तो हमारी भाषाओं, लैटिन, ग्रीक, से बहुत मिलती-जुलती है। तो उन्होंने एक थ्योरी बनाई कि ज़रूर इन सबका कोई एक कॉमन सोर्स होगा, कोई एक मातृभूमि होगी। शुरू में तो सबने माना कि वो जगह भारत ही होगी।
लेकिन फिर कहानी में एक ट्विस्ट आया। जैसे-जैसे भारत पर अंग्रेज़ों की पकड़ मजबूत होती गई, कहानी बदल दी गई। अब वो मातृभूमि भारत से खिसककर यूरोप या सेंट्रल एशिया पहुँच गई। पता है क्यों?
क्योंकि ये कहानी अंग्रेज़ों के लिए एक परफेक्ट हथियार थी।
ये सोचना भी कितना अजीब लगता है, है ना? कि इतिहास को ऐसे भी बदला जा सकता है। मुझे तो पहली बार पढ़कर बहुत गुस्सा आया था। एक तरह का धोखा महसूस हुआ था। कि जिस कहानी को हम अपनी सच्चाई मानकर जी रहे थे, वो तो किसी के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा थी।
उनका मकसद था, 'फूट डालो और राज करो'। और इस एक कहानी ने एक तीर से तीन निशाने साधे:
उत्तर बनाम दक्षिण: सबसे पहले तो उन्होंने हमें आपस में ही लड़वा दिया। कह दिया कि उत्तर भारत वाले तो 'आर्यन' हैं और दक्षिण भारत वाले 'द्रविड़'। एक ही देश के लोगों को एक-दूसरे का दुश्मन बना दिया। सोचिए, ये ज़हर आज तक हमारी नसों में कितना गहरा उतरा हुआ है। क्या आपने कभी अपने आसपास इस तरह की बहस सुनी है? ये उसी झूठ का असर है।
आत्मसम्मान पर हमला: दूसरा, उन्होंने हमारे आत्मविश्वास को तोड़ दिया। हमें बताया गया कि हमारी सबसे पवित्र किताबें, हमारे वेद, हमारी भाषा संस्कृत, सब कुछ बाहर से आया है। तुम्हारा अपना कुछ नहीं है। मतलब, तुम इतने काबिल ही नहीं थे कि एक महान सभ्यता बना सको। ये एक साइकोलॉजिकल हमला था, यार। आपको ये महसूस कराना कि आप हमेशा से किसी के गुलाम ही रहे हो।
अपने राज को सही ठहराना: और तीसरा, सबसे खतरनाक। उन्होंने कहा, "देखो, हम अंग्रेज़ भी तो तुम्हारे पुराने आर्यन भाइयों जैसे ही हैं। वो भी बाहर से आए थे, हम भी बाहर से आए हैं। वो तुम्हें 'सभ्य' बनाने आए थे, हम भी उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।" इस एक कहानी से उन्होंने अपने हर ज़ुल्म पर एक ऐतिहासिक पर्दा डाल दिया।
थॉमस मैकोले नाम के एक अंग्रेज़ ने तो अपने खत में साफ-साफ लिखा था कि उनका मकसद एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना है जो खून और रंग से तो भारतीय हो, लेकिन सोच और अक्ल से अंग्रेज़। और ये आर्यन थ्योरी उसी मकसद को पूरा करने के लिए बनाया गया एक हथियार था।
कितनी सोची-समझी साजिश थी, है ना? दिल दुखता है ये सोचकर।
चलो, अब चलते हैं क्राइम सीन पर: वो नरसंहार जो कभी हुआ ही नहीं
अब बहुत हो गई थ्योरी की बातें। एक जासूस की तरह, अब हम सीधे चलते हैं क्राइम सीन पर। वो जगहें हैं, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा।
कल्पना कीजिए, आज से लगभग 100 साल पहले जब इन शहरों की खोज हुई होगी, तो दुनिया कितनी हैरान रह गई होगी। आज भी आप उनकी तस्वीरें देखें तो दंग रह जाएंगे। पक्की ईंटों के घर, दो-दो मंज़िला इमारतें, दुनिया का पहला ड्रेनेज सिस्टम (जल निकासी प्रणाली)! अरे यार, उनके पास तो ग्रेट बाथ (विशाल स्नानागार) था! ये सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ी थी।
और थ्योरी कहती है कि इस शानदार सभ्यता को कुछ बाहर से आए लड़ाकों ने खत्म कर दिया।
अच्छा, एक मिनट के लिए रुकिए और सोचिए। अगर एक बड़ी सेना किसी शहर पर हमला करती है, तो क्या होता है? तबाही। आग। जले हुए घर। हथियारों के ढेर। और सबसे ज़रूरी, हज़ारों लाशें। है न?
1940 के दशक में, एक ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट थे, मार्टिमर व्हीलर। उन्होंने बड़े फिल्मी अंदाज़ में ऐलान कर दिया, "मुझे सबूत मिल गया है! सिंधु घाटी की तबाही का दोषी इंद्र है!" उन्होंने मोहनजोदड़ो में मिले कुछ कंकालों को आक्रमण का सबूत बता दिया।
लेकिन ये कहानी ज़्यादा दिन चली नहीं। बाद में जॉर्ज एफ. डेल्स जैसे दूसरे आर्कियोलॉजिस्ट ने जब गहराई से जांच की, तो सच सामने आया। पता है क्या मिला?
पूरे शहर में सिर्फ 37 कंकाल। वो भी अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग समय के। कोई सामूहिक कब्र नहीं। कोई जले हुए किले नहीं। एक भी तलवार, एक भी ढाल, एक भी कवच नहीं मिला जो किसी युद्ध की तरफ इशारा करे।
क्या ये मज़ाक नहीं है? आप एक पूरी सभ्यता को खत्म करने की बात कर रहे हैं, और सबूत के नाम पर कुछ भी नहीं? ये तो वैसा ही है जैसे कोई कहे कि मैंने एक हाथी को मार दिया, पर खून का एक कतरा भी नहीं गिरा।
सच तो ये है कि सिंधु घाटी के शहर किसी हमले में खत्म नहीं हुए। उनका पतन धीरे-धीरे हुआ, शायद क्लाइमेट चेंज की वजह से। नदियाँ सूख गईं, और लोग दूसरी जगहों पर चले गए।
बल्कि, हमें तबाही के नहीं, निरंतरता के सबूत मिले हैं। महान आर्कियोलॉजिस्ट बी.बी. लाल ने साबित किया कि हड़प्पा और वैदिक संस्कृति अलग-अलग नहीं हैं। हड़प्पा की खुदाई में यज्ञ की वेदियां मिली हैं। उनकी मुहरों पर योगी की मुद्रा में बैठे पशुपति शिव मिले हैं, जो आज के शिव का ही रूप लगते हैं। मूर्तियों में नमस्ते की मुद्रा है। शादीशुदा औरतों की मूर्तियों की मांग में ठीक वैसा ही सिंदूर भरा है जैसा आज भरा जाता है।
जब मैंने ये पढ़ा, तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए। ये कोई और लोग नहीं थे। ये हम ही थे। ये हमारी 5000 साल पुरानी अटूट कहानी है। वो कहानी जिसे हमसे छीनने की कोशिश की गई।
गुमशुदा नदी का रहस्य: सरस्वती ने बताया सच
अब आता है इस केस का सबसे बड़ा ट्विस्ट। एक ऐसा सबूत जो आसमान से मिला।
आर्यन थ्योरी कहती है कि आर्य अपने साथ एक पवित्र ग्रंथ लाए थे, ऋग्वेद। ऋग्वेद में सबसे ज़्यादा सम्मान एक नदी को दिया गया है। सरस्वती। 80 से ज़्यादा बार उसका ज़िक्र है। उसे 'नदीतमे' (सबसे श्रेष्ठ नदी), 'अम्बितमे' (सबसे श्रेष्ठ माँ) कहा गया है।
कई दशकों तक, इतिहासकारों ने मान लिया कि सरस्वती बस एक काल्पनिक नदी है, कवियों की कल्पना।
और फिर... एंट्री होती है इसरो (ISRO) की।
हमारे वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल करके ज़मीन के नीचे दबे पुराने पानी के रास्तों का नक्शा बनाया। और सैटेलाइट तस्वीरों में एक विशाल, शक्तिशाली नदी का सूखा हुआ रास्ता साफ दिखाई दिया!
और सबसे बड़ी बात जानते हैं क्या थी? हड़प्पा सभ्यता के ज़्यादातर बड़े शहर, राखीगढ़ी, बनावली, कालीबंगन, इसी नदी के किनारे बसे हुए थे। ये वही सरस्वती नदी थी!
इस एक खोज ने पूरी थ्योरी को हिलाकर रख दिया। वजह थी, टाइमलाइन।
वैज्ञानिक स्टडीज़ बताती हैं कि सरस्वती नदी लगभग 1900 बीसी (आज से करीब 3900 साल पहले) के आसपास सूख गई थी।
अब आप खुद सोचिए, एक जासूस की तरह। आर्यन थ्योरी कहती है: आर्य भारत में 1500 बीसी में आए। वैज्ञानिक सबूत कहता है: सरस्वती नदी 1900 बीसी में सूख चुकी थी।
तो जो लोग 1500 बीसी में आए, वो उस नदी की शान में इतने शानदार भजन कैसे लिख सकते थे जो उनके आने से 400 साल पहले ही एक रेगिस्तान बन चुकी थी? क्या उन्होंने रेगिस्तान को देखकर कहा, "वाह! क्या महान नदी है!"?
ये नामुमकिन है, यार।
इसका सिर्फ एक ही मतलब हो सकता है: ऋग्वेद लिखने वाले लोग यहीं के थे। वो सरस्वती को तब से जानते थे, जब वो अपने पूरे उफान पर बहती थी। और ये वही लोग थे जिन्हें हम हड़प्पन कहते हैं। वो आक्रमणकारी नहीं, भारत के मूल निवासी थे।
वो 'सुपर-वेपन' जो हमारे घर में ही मिला
थ्योरी का एक और बड़ा दावा था, घोड़े और रथ। कहा गया कि ये वो सुपर-वेपन थे जो आर्य अपने साथ लाए और इसी की वजह से उन्होंने यहाँ के लोगों को हरा दिया।
रथ को हमेशा एक बाहरी टेक्नोलॉजी माना गया।
और फिर, 2018 में, उत्तर प्रदेश के सिनौली नाम के एक गाँव में कुछ ऐसा मिला जिसने पूरी दुनिया के इतिहासकारों को चुप करा दिया।
ASI की टीम को वहाँ लगभग 4000 साल पुराने शाही कब्रिस्तान मिले। योद्धाओं की कब्रें, जिनके साथ तांबे के हेलमेट, ढालें और तलवारें दफन थीं। लेकिन एक और चीज़ मिली, तीन असली, फुल-साइज़ रथ!
जब इन रथों की कार्बन डेटिंग हुई, तो पता चला कि ये 2000 बीसी से 1800 बीसी के बीच के हैं।
अब फिर से अपनी जासूसी वाली टोपी पहनिए। तथाकथित आर्यन आक्रमण: 1500 बीसी। सिनौली के रथ: लगभग 2000 बीसी।
मतलब, जिस आक्रमण को हुआ बताया जाता है, उससे 500 साल पहले ही भारत में योद्धा रथों का इस्तेमाल कर रहे थे! वो हथियार जिसे आक्रमणकारियों का ब्रह्मास्त्र बताया गया, वो तो असल में हमारे अपने पूर्वजों के पास पहले से मौजूद था।
और जब सिनौली के कंकालों का डीएनए टेस्ट हुआ, तो वो राखीगढ़ी में मिले सिंधु घाटी के लोगों के डीएनए से मैच कर गया।
गेम ओवर। ये योद्धा कोई और नहीं, सिंधु घाटी के ही लोग थे।
आखिरी कील: हमारे पूर्वजों ने DNA के ज़रिए बोला सच
अब हम इस इन्वेस्टिगेशन के आखिरी और सबसे निर्णायक सबूत पर पहुँच गए हैं। एक ऐसा सबूत जो सीधे हमारे पुरखों ने हमें दिया है।
पिछले कुछ सालों में, आर्कियोजेनेटिक्स नाम की एक नई फील्ड ने इतिहास को पढ़ने का तरीका ही बदल दिया है। वैज्ञानिक अब हज़ारों साल पुरानी हड्डियों से डीएनए निकालकर बता सकते हैं कि वो लोग कौन थे।
कहानी का क्लाइमेक्स हरियाणा के राखीगढ़ी में लिखा गया।
2019 में 'सेल' (Cell) नाम के दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित साइंटिफिक जर्नल में एक स्टडी छपी। वैज्ञानिकों को राखीगढ़ी में एक महिला का 4600 साल पुराना कंकाल मिला। और सालों की मेहनत के बाद, वो उसमें से असली, प्राचीन डीएनए निकालने में कामयाब हो गए।
पूरी दुनिया की नज़रें इस डीएनए के नतीजों पर थीं।
और जब नतीजे आए, तो उन्होंने 150 साल पुरानी थ्योरी को एक ही झटके में धूल में मिला दिया।
राखीगढ़ी की उस महिला के जीनोम में स्टेपी पेस्टोलिस्ट (Steppe Pastoralist), यानी सेंट्रल एशिया के उन चरवाहों का 1% भी डीएनए नहीं था, जिन्हें 'आर्यन' माना जाता है।
ज़ीरो। शून्य।
ये इस बात का पक्का वैज्ञानिक सबूत था कि सिंधु घाटी सभ्यता को बनाने वाले लोग 100% यहीं के थे। स्वदेशी।
लेकिन स्टडी का दूसरा नतीजा इससे भी बड़ा था। उस महिला के डीएनए का जब आज के हम भारतीयों के डीएनए से मिलान किया गया, तो पता चला कि आज के ज़्यादातर भारतीयों का सबसे बड़ा जेनेटिक सोर्स वही है जो उस हड़प्पन महिला का था।
इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब ये है कि हड़प्पा के लोग कहीं गायब नहीं हुए। उन्हें किसी ने खत्म नहीं किया। वो आप और हम हैं। हम सब उन्हीं के वंशज हैं।
तो फिर सवाल उठता है कि आज के कुछ भारतीयों में जो थोड़ा-बहुत सेंट्रल एशिया (स्टेपी) का डीएनए मिलता है, वो कहाँ से आया?
जेनेटिक्स इसका भी जवाब देता है। ये डीएनए आया, लेकिन बहुत बाद में, और एक आक्रमण के तौर पर नहीं। ये हज़ारों सालों में धीरे-धीरे हुआ माइग्रेशन था। छोटे-छोटे समूह आए और यहाँ की विशाल आबादी के साथ घुल-मिल गए।
इसे ऐसे समझिए। मान लीजिए एक गिलास में पहले से लाल रंग का पानी (सिंधु घाटी के लोग) भरा हुआ है। आर्यन आक्रमण थ्योरी कहती है कि किसी ने बाहर से आकर उस गिलास में ज़बरदस्ती नीला पानी (स्टेपी के लोग) डाला और लाल पानी को फेंक दिया।
लेकिन डीएनए सबूत कहता है कि लाल पानी का गिलास पहले से लबालब भरा हुआ था। और बहुत बाद में, उसमें धीरे-धीरे, प्यार से नीले पानी की कुछ बूँदें आकर घुल-मिल गईं। ये आक्रमण नहीं, आत्मसात था। रिप्लेसमेंट नहीं, मिश्रण था।
तो, हमारी असली कहानी क्या है?
तो इस पूरी जासूसी के बाद हम कहाँ पहुँचे?
सबूत हमारे सामने हैं। पुरातत्व चीख-चीख कर कह रहा है, कोई आक्रमण नहीं हुआ। सिनौली के रथ गरज कर कह रहे हैं, हम यहीं के योद्धा थे। राखीगढ़ का डीएनए चिल्लाकर कह रहा है, हमारे पुरखे यहीं के थे। और हमारे वेद गाकर कह रहे हैं, यह धरती ही हमारी मातृभूमि है।
आर्यन आक्रमण थ्योरी सिर्फ एक गलती नहीं थी, ये एक सोचा-समझा धोखा था। एक औपनिवेशिक प्रोपेगेंडा, जिसे आज विज्ञान ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है।
ये जानकर आपको कैसा महसूस हो रहा है?
मेरे लिए, ये एक आज़ादी जैसा एहसास है। उस झूठ से आज़ादी जो हमें स्कूल में पढ़ाया गया। ये अपनी जड़ों को फिर से पाने जैसा है। ये कहानी किसी हार की नहीं है। ये निरंतरता की कहानी है। 5000 साल की अटूट निरंतरता की।
ये एक स्वदेशी सभ्यता की कहानी है, जिसने न सिर्फ दुनिया के सबसे बेहतरीन शहर बनाए, बल्कि एक ऐसी संस्कृति की नींव रखी जो आज भी हमारे त्योहारों में, हमारी पूजा में, हमारे 'नमस्ते' में, और हमारी माँओं की मांग के सिंदूर में ज़िंदा है।
इस सच्चाई को जानना सिर्फ इतिहास को सही करना नहीं है। ये अपने आत्म-सम्मान को वापस पाना है।
आपकी ज़िंदगी में वो कौन सी कहानी है जिस पर आपने हमेशा विश्वास किया, लेकिन बाद में पता चला कि वो सच नहीं थी? सोचिएगा ज़रूर। क्योंकि अपनी असली कहानी को जानना ही सबसे बड़ी ताकत है।
चलो, मिलते हैं फिर किसी और अनसुलझे रहस्य के साथ।
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